Monday, 11 June 2018

भगवान शिव के 11 रुद्र


                                                         भगवान शिव के 11 रुद्र 


1. शंभु : सभी को उत्पन्न करने के कारण भगवान शिव शंभु कहे गये हैं. प्रथम रुद्र-शंभु हुए. 

2. पिनाकी : देवाधिदेव रुद्र के दूसरे रूप में पिनाकी कहे गये हैं. इन रुद्र के स्वरूप 'वेद' हैं. 

3. गिरीश : कैलाश पर्वत पर भगवान रुद्र अपने तीसरे रूप में हैं. इसी कारण 'गिरीश' नाम से प्रसिद्ध है. 

4. स्थाणु : रुद्र के चौथे स्वरूप को ही स्थाणु कहा गया है. इस अवस्था में शिव समाधिमग्न तथा निष्काम भाव में हैं. 

5. भर्ग : पांचवें स्वरूप रुद्र 'भर्ग' कहे गये हैं. इस रूप में महादेव भय विनाशक हैं. अत: इसी कारण भर्ग कहलाये हैं. 

6. सदाशिव : रुद्र के छठे स्वरूप में महादेव 'सदाशिव' कहे गये हैं. मूर्तिरहित परब्रह्मं रुद्र हैं. अत: चिन्मय आकार के कारण सदाशिव हैं. 

7. शिव : रुद्र के सातवें स्वरूप में ही महादेव 'शिव' कहे गये हैं. जिनको सभी चाहते हैं-उन्हीं को 'शिव' मानते हैं. इन रूप में इनका भवन-ऊंकार हैं. 

8. हर : रुद्र के आठवें स्वरूप ही 'हर' हैं. इस रूप में ये भुजंग भूषणधारित हैं और सर्प संहारक तमोगुणी प्रवृत्त हैं. इस कारण भगवान हर कालातीत हैं. 

9. शर्व : रुद्र के नौवें स्वरूप को 'शर्व' कहा गया है. सर्वदेवमय रथ पर आरूढ़ होकर त्रिपुर संहार के कारण ही देवाधिदेव शर्व-रुद्र कहे गये. 

10. कपाली : रुद्र के दसवें स्वरूप का नाम कपाली हैं. ब्रह्मा के मस्तक विच्छेन और अतिशय क्रोधित मुख युक्त होकर ही दक्ष-यज्ञ विध्वंस करने के कारण ही इस रूप में इनका नाम 'कपाली' कहे गये. 

11. भव : रुद्र के ग्यारवें स्वरूप को 'भव' कहा गया है. वेदांत का प्रादुर्भाव इसी रूप में हुआ तथा योगाचार्य के रूप में अवतीर्ण होकर योगमार्ग खोलते हैं. संपूर्ण सृष्टि में इसी स्वरूप से व्याप्त होने के कारण ही इन्हें 'भव' कहा गया है.

सरल मंत्र



* ऊर्ध्व भू फट् । 

* नमः शिवाय । 

* ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय । 

* ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा । 

* इं क्षं मं औं अं । 

* प्रौं ह्रीं ठः । 

* नमो नीलकण्ठाय । 

* ॐ पार्वतीपतये नमः ।

रुद्र गायत्री मंत्र

                                                                  रुद्र गायत्री मंत्र 

                                                ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि 

                                                           तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ 

भगवान रुद्र अर्थात शिव साक्षात महाकाल हैं। सृष्टि के अंत का कार्य इन्हीं के हाथों है। उन्हें सृष्टि का संहारकर्ता माना जाता है। सभी देवताओं सहित तमाम दानव, मानव, किन्नर सब भगवान शिव की आराधना करते हैं। लेकिन मानसिक रुप से विचलित रहने वालों को मन की शांति के लिए रुद्र गायत्री मंत्र से भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। जिन जातकों की जन्म पत्रिका अर्थात कुंडली में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु अथवा शनि का कोप है इस मंत्र के नियमित जाप एवं नित्य शिव की आराधना से सारे दोष दूर हो जाते हैं। इस मंत्र का कोई विशेष विधि-विधान भी नहीं है। इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता हैं। अगर उपासक सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ध्यान रहे कोई भी आराधना तभी फलदायी होती है जब वो सच्चे मन से की जाती है।

महामृत्युंजय मंत्र

                                                                   
                                                                 महामृत्युंजय मंत्र 

                                                ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 

                                             उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ 

यह माना जाता है कि इस महामृत्युंजय मंत्र के जाप से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही यदि साधक इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप कर ले तो वर्तमान अथवा भविष्य की समस्त शारीरिक व्याधियां एवं अनिष्टकारी ग्रहों के दुष्प्रभाव समाप्त किये जा सकते हैं। यह भी माना जाता है कि इस मंत्र की साधना से अटल मृत्यु को भी टाला जा सकता है। इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। मंत्र में कहा गया है कि जो त्रिनेत्र हैं एवं हर सांस में जो प्राण शक्ति का संचार करने वाले हैं जिसकी शक्ति समस्त जगत का पालन-पोषण कर रही है हम उन भगवान शंकर की पूजा करते हैं। उनसे प्रार्थना करते हैं कि हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्ति दें ताकि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो। जिस प्रकार ककड़ी पक जाने पर बेल के बंधन से मुक्त हो जाती है उसी प्रकार हमें भी ककड़ी की तरह इस बेल रुपी संसार से सदा के लिए मुक्त मिले एवं आपके चरणामृत का पान करते हुए देहत्याग कर आप में ही लीन हो जांए। 

इस महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये 33 अक्षर 33 देवताओं के प्रतीक हैं जिनमें 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्यठ, 1 प्रजापति एवं 1 षटकार हैं। इसलिए माना जाता है कि इस मंत्र सभी देवताओं की संपूर्ण शक्तियां विद्यमान होती हैं जिससे इसका पाठ करने वाले को दीर्घायु के साथ-साथ निरोगी एवं समृद्ध जीवन प्राप्त होता है। 

कुछ साधक इस महामृत्युंजय मंत्र में संपुट लगाकर भी इसका उच्चारण करते हैं जो निम्न है: 

                                                    ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः 

                                        ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। 

                                       उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।। 

                                               ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

शिव तांडव स्तोत्रम्


                                                             शिव तांडव स्तोत्रम् 

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् | 

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||


जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि | 

धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२|| 


धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे | 

कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३|| 


लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे | 

मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४|| 


सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः | 

भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५|| 


ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् | 

सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६|| 


कराल भाल पट्टिका धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके | 

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७|| 


नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्-कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः | 

निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८|| 


प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा-वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् | 

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् | 

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०|| 


जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् | 

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११|| 


स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः | 

तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२|| 


कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् | 

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३|| 


इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् | 

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४|| 


पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे | 

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५|| 


इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
                   
                       Jai Jai Shri Ram Jai Jai Radhe Sham

                        Sankat Kate Mite Sab Pidda Jo Simre Hanumat Balbeera

Jai Bajrangbali


Hanuman Best Mantra Hindi

                                                         Hanuman Best Mantra Hindi 

                                                           हं हनुमते रुद्रात्मकायं हुं फट् 

इस मंत्र के विषय में ऐसी मान्यता है कि पूर्व-काल में भगवान श्रीकृष्ण ने यह मंत्र अर्जुन को बताया था, तथा इसकी साधना करके उन्होंने न केवल हनुमान जी को प्रसन्न ही कर लिया था, अपितु उनकी कृपा से त्रैलोक्य-विजयी का पद भी पाया था | इसी मंत्र के वशीभूत होकर हनुमान जी महाराज महाभारत के युद्ध में अर्जुन के रथ की ध्वजा पर सदैव विराजमान रहे थे और उसे कभी झुकने नहीं दिया था | हनुमान जी के संरक्षण में रहते हुए ही अर्जुन ने उस महायुद्ध में विजय प्राप्त की थी | 

हनुमान जी के इस मंत्र/Mantra का जप नियमित रूप से पूजा के समय किया जा सकता है | वैसे तो इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए सवा लाख मंत्रों के जप और साढ़े बारह हजार आहुतियों का विधान है | किन्तु आपको मंत्र सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है आप इस मंत्र का जप अपने कल्याणार्थ कर सकते है | हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए व मनोकामना पूर्ती के लिए प्रतिदिन 3 माला का जप करें | 

अन्य जानकारियाँ : – 

हनुमान यंत्र को इस प्रकार से सिद्ध कर घर में स्थापित करें और पाए सभी कष्टों से मुक्ति 
पूजा-पाठ के समय इस स्तुति मंत्र द्वारा हनुमान जी का ध्यान अवश्य करें 

जानिए, सरल व गुप्त हनुमान साधना विधि 

मंत्र/Mantra जप में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें | माला को गोमुखी में रखकर ही मंत्र जप करें व पूजा स्थान पर हनुमान यंत्र को अवश्य स्थापित करें | हनुमान जी के इस द्वाद्श्याक्षर मंत्र(Hanuman Best Mantra Hindi) के नियमित जप से हनुमान यंत्र भी स्वयं ही सिद्ध होने लगता है |

Saturday, 9 June 2018

भगवान शिव के मंत्र



मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए शिव जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए: 


नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय 

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥ 

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय 

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥ 

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय 

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥ 

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्। 

अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।। 




Mahadev Ji




काल अनेक #महाकाल एक 

देव अनेक #महादेव एक 

शक्ति अनेक #शिवशक्ती एक 

नेत्र अनेक #त्रिनेत्रधारी एक 

सर्प अनेक #सर्पधारी एक 

🙏🙏 #हर_हर_महादेव 🙏🙏

Jay Mahakaal


                                 राम उसका रावण भी उसका, जीवन उसका मरण भी उसका, 

                                   ताण्डव है और ध्यान भी वो है, अज्ञानी का ज्ञान भी वो है ।

Friday, 8 June 2018

Maha Mrityunjaya Mantra


Literal Meaning of the Maha Mrityunjaya Mantra


ॐ aum = is a holy/otherworldly syllable in Hinduism, Jainism, Buddhism and Sikhism. 

त्र्यम्बकं tryambakam = the three-peered toward one (accusative case), 

त्रि + अम्बकम् = tri + ambakam = three + eye 

यजामहे yajāmahe = We love, love, respect, love, 

सुगन्धिम् sugandhim = sweet scent, fragrant (accusative case), 

पुष्टि puṣṭi = A very much supported condition, flourishing, prosperous, completion of life, 

वर्धनम् vardhanam = One who supports, fortifies, causes to increment (in wellbeing, riches, prosperity); who heartens, elates, and reestablishes wellbeing; a great plant specialist, 

पुष्टि-वर्धनम् = puṣṭi+vardhanam = पुष्टि: वर्धते अनेन तत् = puṣṭiḥ vardhate anena tat (samas)= The person who sustains another person and gives his life completion. 

उर्वारुकमिव urvārukam-iva = like the cucumber or melon (in the accusative case); or like a major peach. 

बन्धनान् bandhanān = "from bondage" {i.e. from the stem of the cucumber} (of the gourd); (the closure is in reality long an, at that point - t, which changes to n/anusvara in view of sandhi) 

मृत्योर्मुक्षीय mṛtyormukṣīya = Free, free From death 

मृत्योः + मुक्षीय = mṛtyoḥ + mukṣīya= from death + free (Vedic utilization) 

माऽमृतात् mā'mṛtāt can be interpreted in various distinctive ways: 

1) मा + अमृतात् = mā + amṛtāt = not + interminability, nectar 

Interpretation would be: (Free me from death however) not from everlasting status. 

2) मा (माम्) + अमृतात् = mā (short type of mām) + amṛtāt = me + interminability

Har Har Mahadev

                                                             Shiv G Satya Hai


Bhole Nath

Mahadev Tum Se Chup Jaye Meri Takleef Aise Koi Baat Nahi Teri Bhakti Se Hi Pehchan Hai Meri Varna Meri Koi Aukat Nahi

Thursday, 7 June 2018

Mahadev G



Dikhawe ki  Mohabbat Se Dur Rehta Hu Main, Isliye Mahadev Ke Nashe Mein Chur Rehta Hu Main

Bhola g



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                        {Khud Ko Mahadev Se Jod Do Bakki  Sabb Mahadev Per Chod  Do}