भगवान शिव के 11 रुद्र
1. शंभु : सभी को उत्पन्न करने के कारण भगवान शिव शंभु कहे गये हैं. प्रथम रुद्र-शंभु हुए.
2. पिनाकी : देवाधिदेव रुद्र के दूसरे रूप में पिनाकी कहे गये हैं. इन रुद्र के स्वरूप 'वेद' हैं.
3. गिरीश : कैलाश पर्वत पर भगवान रुद्र अपने तीसरे रूप में हैं. इसी कारण 'गिरीश' नाम से प्रसिद्ध है.
4. स्थाणु : रुद्र के चौथे स्वरूप को ही स्थाणु कहा गया है. इस अवस्था में शिव समाधिमग्न तथा निष्काम भाव में हैं.
5. भर्ग : पांचवें स्वरूप रुद्र 'भर्ग' कहे गये हैं. इस रूप में महादेव भय विनाशक हैं. अत: इसी कारण भर्ग कहलाये हैं.
6. सदाशिव : रुद्र के छठे स्वरूप में महादेव 'सदाशिव' कहे गये हैं. मूर्तिरहित परब्रह्मं रुद्र हैं. अत: चिन्मय आकार के कारण सदाशिव हैं.
7. शिव : रुद्र के सातवें स्वरूप में ही महादेव 'शिव' कहे गये हैं. जिनको सभी चाहते हैं-उन्हीं को 'शिव' मानते हैं. इन रूप में इनका भवन-ऊंकार हैं.
8. हर : रुद्र के आठवें स्वरूप ही 'हर' हैं. इस रूप में ये भुजंग भूषणधारित हैं और सर्प संहारक तमोगुणी प्रवृत्त हैं. इस कारण भगवान हर कालातीत हैं.
9. शर्व : रुद्र के नौवें स्वरूप को 'शर्व' कहा गया है. सर्वदेवमय रथ पर आरूढ़ होकर त्रिपुर संहार के कारण ही देवाधिदेव शर्व-रुद्र कहे गये.
10. कपाली : रुद्र के दसवें स्वरूप का नाम कपाली हैं. ब्रह्मा के मस्तक विच्छेन और अतिशय क्रोधित मुख युक्त होकर ही दक्ष-यज्ञ विध्वंस करने के कारण ही इस रूप में इनका नाम 'कपाली' कहे गये.
11. भव : रुद्र के ग्यारवें स्वरूप को 'भव' कहा गया है. वेदांत का प्रादुर्भाव इसी रूप में हुआ तथा योगाचार्य के रूप में अवतीर्ण होकर योगमार्ग खोलते हैं. संपूर्ण सृष्टि में इसी स्वरूप से व्याप्त होने के कारण ही इन्हें 'भव' कहा गया है.