Thursday 27 December 2012

Arti Shive Ji kI

Arti Shive Ji kI 

आरती भगवान को याद करने का सबसे उत्तम साधन माना जाता है. यह एक ऐसा साधन है जिससे प्रभु की स्तुती में सहायता मिलती है. हम अपने इस ब्लॉग में समय समय पर कई देवी-देवताओं की आरतियां लाते रहे हैं. और इस बार हम लेकर आएं हैं भगवान शिव की आरती.

भगवान शिव को त्रिनेत्री भी कहा जाता है. माना जाता है शिव की तीसरी आंख प्रलय की निशानी है. शिवजी की जटा में गंगा तो गले में सर्प विराजते हैं. सिर पर चन्द्रमा का वास है. भगवान शिव को सुर और असुर दोनों का अधिपति और भगवाना माना जाता है.

माना जाता है कि शिवजी ही एक ऐसे भगवान है जो जरा सी भक्ति पर भी प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए भगवान शिव को भोला कहा जाता है. तो आइयें चलिए शिवजी की आरती करके अपने दिन को सफल बनाएं.

शिवजी की आरती
सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी॥ हर हर .

आदि, अनन्त, अनामय, अकल कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर..

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी॥ हरहर ..

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी॥ हरहर ..

मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हरहर ..
छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।
चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हरहर ..

प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी॥ हरहर ..
शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी॥ हरहर ..
निर्गुण, सगुण, निरजन, जगमय, नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हरहर ..

सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता। हरहर ..
हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हरहर ..

No comments:

Post a Comment