Tuesday, 13 June 2023

महादेव आह्वान महामंत्र स्तुति:

                                               महादेव आह्वान महामंत्र स्तुति: 


कैलासशिखरस्यं च पार्वतीपतिमुर्त्तममि। 

यथोक्तरूपिणं शंभुं निर्गुणं गुणरूपिणम्।। 


पंचवक्त्र दशभुजं त्रिनेत्रं वृषभध्वजम्। 

कर्पूरगौरं दिव्यांग चंद्रमौलि कपर्दिनम्।। 


व्याघ्रचर्मोत्तरीयं च गजचर्माम्बरं शुभम्। 

वासुक्यादिपरीतांग पिनाकाद्यायुद्यान्वितम्।। 


सिद्धयोऽष्टौ च यस्याग्रे नृत्यन्तीहं निरंतरम्। 

जयज्योति शब्दैश्च सेवितं भक्तपुंजकै:।। 


तेजसादुस्सहेनैव दुर्लक्ष्यं देव सेवितम्। 

शरण्यं सर्वसत्वानां प्रसन्न मुखपंकजम्।। 


वेदै: शास्त्रैर्ययथागीतं विष्णुब्रह्मनुतं सदा। 

भक्तवत्सलमानंदं शिवमावाह्याम्यहम्।।

Monday, 11 June 2018

भगवान शिव के 11 रुद्र


                                                         भगवान शिव के 11 रुद्र 


1. शंभु : सभी को उत्पन्न करने के कारण भगवान शिव शंभु कहे गये हैं. प्रथम रुद्र-शंभु हुए. 

2. पिनाकी : देवाधिदेव रुद्र के दूसरे रूप में पिनाकी कहे गये हैं. इन रुद्र के स्वरूप 'वेद' हैं. 

3. गिरीश : कैलाश पर्वत पर भगवान रुद्र अपने तीसरे रूप में हैं. इसी कारण 'गिरीश' नाम से प्रसिद्ध है. 

4. स्थाणु : रुद्र के चौथे स्वरूप को ही स्थाणु कहा गया है. इस अवस्था में शिव समाधिमग्न तथा निष्काम भाव में हैं. 

5. भर्ग : पांचवें स्वरूप रुद्र 'भर्ग' कहे गये हैं. इस रूप में महादेव भय विनाशक हैं. अत: इसी कारण भर्ग कहलाये हैं. 

6. सदाशिव : रुद्र के छठे स्वरूप में महादेव 'सदाशिव' कहे गये हैं. मूर्तिरहित परब्रह्मं रुद्र हैं. अत: चिन्मय आकार के कारण सदाशिव हैं. 

7. शिव : रुद्र के सातवें स्वरूप में ही महादेव 'शिव' कहे गये हैं. जिनको सभी चाहते हैं-उन्हीं को 'शिव' मानते हैं. इन रूप में इनका भवन-ऊंकार हैं. 

8. हर : रुद्र के आठवें स्वरूप ही 'हर' हैं. इस रूप में ये भुजंग भूषणधारित हैं और सर्प संहारक तमोगुणी प्रवृत्त हैं. इस कारण भगवान हर कालातीत हैं. 

9. शर्व : रुद्र के नौवें स्वरूप को 'शर्व' कहा गया है. सर्वदेवमय रथ पर आरूढ़ होकर त्रिपुर संहार के कारण ही देवाधिदेव शर्व-रुद्र कहे गये. 

10. कपाली : रुद्र के दसवें स्वरूप का नाम कपाली हैं. ब्रह्मा के मस्तक विच्छेन और अतिशय क्रोधित मुख युक्त होकर ही दक्ष-यज्ञ विध्वंस करने के कारण ही इस रूप में इनका नाम 'कपाली' कहे गये. 

11. भव : रुद्र के ग्यारवें स्वरूप को 'भव' कहा गया है. वेदांत का प्रादुर्भाव इसी रूप में हुआ तथा योगाचार्य के रूप में अवतीर्ण होकर योगमार्ग खोलते हैं. संपूर्ण सृष्टि में इसी स्वरूप से व्याप्त होने के कारण ही इन्हें 'भव' कहा गया है.

सरल मंत्र



* ऊर्ध्व भू फट् । 

* नमः शिवाय । 

* ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय । 

* ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा । 

* इं क्षं मं औं अं । 

* प्रौं ह्रीं ठः । 

* नमो नीलकण्ठाय । 

* ॐ पार्वतीपतये नमः ।

रुद्र गायत्री मंत्र

                                                                  रुद्र गायत्री मंत्र 

                                                ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि 

                                                           तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥ 

भगवान रुद्र अर्थात शिव साक्षात महाकाल हैं। सृष्टि के अंत का कार्य इन्हीं के हाथों है। उन्हें सृष्टि का संहारकर्ता माना जाता है। सभी देवताओं सहित तमाम दानव, मानव, किन्नर सब भगवान शिव की आराधना करते हैं। लेकिन मानसिक रुप से विचलित रहने वालों को मन की शांति के लिए रुद्र गायत्री मंत्र से भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। जिन जातकों की जन्म पत्रिका अर्थात कुंडली में कालसर्प, पितृदोष एवं राहु-केतु अथवा शनि का कोप है इस मंत्र के नियमित जाप एवं नित्य शिव की आराधना से सारे दोष दूर हो जाते हैं। इस मंत्र का कोई विशेष विधि-विधान भी नहीं है। इस मंत्र को किसी भी सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता हैं। अगर उपासक सोमवार का व्रत करें तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ध्यान रहे कोई भी आराधना तभी फलदायी होती है जब वो सच्चे मन से की जाती है।

महामृत्युंजय मंत्र

                                                                   
                                                                 महामृत्युंजय मंत्र 

                                                ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 

                                             उर्वारुकमिव बन्धनानत् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ 

यह माना जाता है कि इस महामृत्युंजय मंत्र के जाप से भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा तो प्राप्त होती ही है साथ ही यदि साधक इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप कर ले तो वर्तमान अथवा भविष्य की समस्त शारीरिक व्याधियां एवं अनिष्टकारी ग्रहों के दुष्प्रभाव समाप्त किये जा सकते हैं। यह भी माना जाता है कि इस मंत्र की साधना से अटल मृत्यु को भी टाला जा सकता है। इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। मंत्र में कहा गया है कि जो त्रिनेत्र हैं एवं हर सांस में जो प्राण शक्ति का संचार करने वाले हैं जिसकी शक्ति समस्त जगत का पालन-पोषण कर रही है हम उन भगवान शंकर की पूजा करते हैं। उनसे प्रार्थना करते हैं कि हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्ति दें ताकि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो। जिस प्रकार ककड़ी पक जाने पर बेल के बंधन से मुक्त हो जाती है उसी प्रकार हमें भी ककड़ी की तरह इस बेल रुपी संसार से सदा के लिए मुक्त मिले एवं आपके चरणामृत का पान करते हुए देहत्याग कर आप में ही लीन हो जांए। 

इस महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं। महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ये 33 अक्षर 33 देवताओं के प्रतीक हैं जिनमें 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्यठ, 1 प्रजापति एवं 1 षटकार हैं। इसलिए माना जाता है कि इस मंत्र सभी देवताओं की संपूर्ण शक्तियां विद्यमान होती हैं जिससे इसका पाठ करने वाले को दीर्घायु के साथ-साथ निरोगी एवं समृद्ध जीवन प्राप्त होता है। 

कुछ साधक इस महामृत्युंजय मंत्र में संपुट लगाकर भी इसका उच्चारण करते हैं जो निम्न है: 

                                                    ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः 

                                        ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। 

                                       उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।। 

                                               ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

शिव तांडव स्तोत्रम्


                                                             शिव तांडव स्तोत्रम् 

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् | 

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||


जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि | 

धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२|| 


धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे | 

कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३|| 


लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे | 

मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४|| 


सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः | 

भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५|| 


ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् | 

सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६|| 


कराल भाल पट्टिका धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके | 

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७|| 


नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्-कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः | 

निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८|| 


प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा-वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् | 

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् | 

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०|| 


जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् | 

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११|| 


स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः | 

तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२|| 


कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् | 

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३|| 


इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् | 

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४|| 


पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे | 

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५|| 


इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्